सर्वे भवन्तु सुखिन:
सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दु:खभाग भवेत् ।।
सभी सुखी होवें,
सभी रोगमुक्त रहें,
सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें,
किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े

 
Swami Yogeshwaranand Ji Paramahans
 
अयन्तु परमो धर्मो यत् योगेनात्मदर्शनम् ।।१।।
न योगात् परमपुण्यं न योगात्परं शिवम् ।
न योगात् परं शान्तिर्न योगात्परमंसुखम् ।।२।।
ज्ञानं तु जन्मनैकेन योगादेव प्रजायते ।
तस्मात् योगात्परतरो नास्ति मार्गस्तु मोक्षद: ।।३।।
योग के द्वारा आत्मदर्शन सबसे बड़ा धर्म है।
योग से बढ़कर न कोई पुण्य है, न कल्याणकारी वस्तु, न शान्ति और न कोई परम सुख है ।
योग के द्वारा तो एक जन्म में ही ज्ञान हो सकता है अतएव योग से बढ़कर मोक्षदायक अन्य कोई मार्ग नहीं है ।
Updated 7-July-2014
by Tejinder Singh