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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दु:खभाग भवेत् ।। |
Happiness be unto all. Perfect health be unto all. May all see what is good. May all be free from suffering. |
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Swami Yogeshwaranand Ji Paramahans |
Introduction
श्री योगेश्वरानन्द परमंहस, पहले व्यासदेव के नाम से प्रसिद्ध थे, चौदह वर्ष की अल्प आयु में ही आध्यात्म ज्ञान एवं आत्मसिद्धि की प्राप्ति के लिए गृहत्याग किया। युवा ब्रह्मचारी ने जीवन के प्रारम्भिक वर्ष संस्कृत भाषा के अध्ययन एवं धर्मग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त करने में व्यतीत किये। तदुपरान्त, हिमालय के प्रचीन ऋषियों का अनुसरण करते हुए, कठोर तपश्चर्या एवं योग-साधना के साथ-साथ ऐसे सदगुरु की खोज भी जारी रखी, जो उन्हें अन्तिम उद्देश्य की प्राप्ति करा सके, उन्हें कई साधु-संन्यासी मिले जिनके सम्बन्ध में केवल धार्मिक ग्रन्थों में ही पढ़ने को मिलता है, परन्तु उनकी खोज, उसी समय समाप्त हो गयी, जब उनकी भेंट अवधुत स्वामी आत्मानन्दजी से हुई, जो उसी समय तीर्थापुरी ( तिब्बत ) से लौटे थे।
निरन्तर निष्ठापूर्वक ध्यान-अभ्यास द्वारा उन्हें विभिन्न प्रकार की समाधियों का अभ्यास हुआ, जिनमें से कुछ कई सप्ताह स्थिर रहीं, जिनके परिणामस्वरुप आत्मज्ञान, ब्रह्माण्डज्ञान और मानव जीवन के परमोद्देश्य का ज्ञान प्राप्त हुआ। परम गोपनीय ज्ञान, जो व्यक्तिगत सम्बन्धों से गुरु से शिष्य तक आजीवन साधना के उपरान्त प्राप्त होता था, अब उनके सदगुरु के आदेश अनुसार उनकी कृतियों में निहित हैं।
महाराज श्री 99 वर्ष के दीर्ध जीवन के उपरान्त 23 अप्रैल, 1985 को ऋषिकेश में ब्रह्मलीन हो गये। |
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