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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दु:खभाग भवेत् ।। |
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े |
iv. Sukhasana ( Comfort Posture ) |
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प्रथम विधि पहले पाँवों को सामने रखकर बैठें । उसके बाद वाम पाद की एड़ी को अण्डकोश के दक्षिण-पार्श्व में रखें और दक्षिण पाद को वाम पाद के ऊपर इस प्रकार से स्थापित करें कि उसकी एड़ी अण्ड़कोष के वाम पार्श्व में हो जाये । उस के पश्चात् दोनों हाथों की ऊंगलियों के परस्पर गंूथ कर गोद में रखकर ग्रीवा और कटिभाग सीधा करके दोनों स्कन्धों को ऊपर को तान करके बैठें । परन्तु शरीर में कोई विशेष तनाव या खिचाव न पड़े । दूसरी विधि सुविधानुसार किसी एक पैर को घुटने से मोड़कर अण्डकोष के पास रखें । फिर दूसरे पैर को उसके ठीक ऊपर उसी रूप में रख दें । ऊंगलियों के परस्पर गंूथ कर पैरों पर रखे। कटिभाग सीधा करके दोनों स्कन्धों को ऊपर को तान करके बैठें । परन्तु शरीर में कोई विशेष तनाव या खिचाव न पड़े । |
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Benefit:-
लाभ - सुखसाध्य होने से इस आसन का अभ्यास सब करते हैं । इससे भजन-ध्यान-समाधि में शान्ति से सुखपूर्वक कई दिनों तक बैठा जा सकता है । देह, प्राण, इन्द्रिय और मन में थकावट न्यून होती है । श्वास की गति सम रहती है । श्वाण, मनन, निदिध्यासन-समाधि में देर तक बैठा जा सकता है । |
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