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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दु:खभाग भवेत् ।। |
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े |
iii. अस्तेय ; |
अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना। भगवान् ने जो कुछ प्रधान किया है, उसमें पूर्ण सन्तुष्ट व आनन्दित रहना चाहिए। बौध्दिक अस्तेय - दूसरों के पदार्थां की ओर ध्यान भी न करना - विचार भी न करना - दृष्टिपात भी न करना । वाचिक-अस्तेय - अपने कथन से भी किसी को चोरी, डाके आदि में प्रवृत न करना; वाचिक अस्तेय है। शारीरिक-अस्तेय - विचार तथा वचन के अनुसार शारीरिक व्यापार से भी किसी के पदार्थ की चोरी-लूट आदि न तो स्वयं करना न दूसरे से कराना, यह शारीरिक-अस्तेय है। छल-बल-दल प्रयोग से स्वामी की आज्ञा के बिना उनके पदार्थ को अपना लेना तो स्पष्ट ही घृणित-निन्दकीय स्तेयकर्म ( चोरी और डाका ) है। |