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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दु:खभाग भवेत् ।। |
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े |
iv - स्वाध्याय: Self-Study; |
स्वाध्याय:
प्रणवादि पवित्राणां जपो मोक्षशास्त्राध्ययनं वा। ( २-१) अर्थात् - ओंकार, गायत्री आदि पवित्र करने वाले मन्त्रों का जप करना। प्रार्थना गीतों और भजन आदि गाकर अथवा उपदेश - करना-कराना; गीता, रामायण, पुराण आदि की कथा करना-कराना; गुरुद्वारा ग्रन्थों का अध्ययन करना स्वाध्याय है। प्रत्येक प्रकार के अध्ययन में शरीर साथ देता है। वाणी तथा बुद्धि द्वारा किये जाने वाले स्वाध्याय इसी की सहायता से सफल होते हैं । शरीरिक क्रियाओं को त्याग कर दस - बारह घण्टे स्वाध्याय - अध्ययन में रत रहना, बिना बोले जीभ तथा होष्ठों को हिलाकर पाठ करना या लिखना आदि शरीररिक स्वाध्याय है । स्वाध्यायात्योगमासीत् योगात्स्वाध्यायमामनेत् । स्वाध्याय योग सम्पत्या परमात्मा प्रकाशते ।। ( योग, १-२८ ) व्यासभाष्य अर्थात् - स्वाध्याय के पश्चात् समाहित हो, और समाधि द्वारा स्वाध्याय के विषय का साक्षात्कार करे; इस प्रकार स्वाध्याय तथा योग के संयोग से परमात्मा के स्वरूप की अभिव्यक्ति होती है - स्वरूप का प्रकाश होता है । ईश्वर का वाचक प्रणव है, प्रणव के जप तथा ध्यान से, समाधि से ईश-साक्षात्कार हो जाता है । स्वाध्यायादिष्ट देवता सम्प्रयोग: । ( योग २-४४) अर्थात् - स्वाध्यायशील योगी के साथ अपने इष्ट-देवता का सम्बन्ध हो जाता है। देव, सिद्धि-पुरुष इस स्वाध्यायशील को दर्शन देते हैं और इसका कार्य भी सिद्ध कर देते हैं । |