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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दु:खभाग भवेत् ।। |
Happiness be unto all. Perfect health be unto all. May all see what is good. May all be free from suffering. |
i. Non-violence, Non-injury, Harmlessness; |
अहिंसा का अर्थ है - सदा और सर्वदा देह वाणी,बुध्दि से किसी प्राणी का अपकार न करना - कष्ट न देना। बौध्दिक-अहिसा - अहिसा-हिंसा आदि का मुख्य करण बुध्दि है। यही भले-बुरे का निर्णय करके, वचन तथा कर्म में मन को प्रवृत्त करती-कराती है। अत: बौध्दिक-वाचिक-कायिक हिंसा का सर्वथा परित्याग कर देना ही पूर्ण अहिंसा है। तब किसी प्राणी के द्वारा कष्ट-अपमान-हानि पाकर भी बुध्दि में उत्तेजना नहीं होती। बदला लेने का - अपराधी को दण्ड देने का भाव तक उत्पन्न नहीं होता। वाचिक-अहिंसा - वाचिक-हिंसा भी कई प्रकार से की जाती है; कटु वाणी से किसी का अपमान करना, उत्तेजक वचन बोलना, किसी के वध की आज्ञा देना, किसी के अनिष्ट करने का परामर्श देना, आदि वाचिक-हिंसा है। कटु-कठोर वचनों से प्रत्येक मनुष्य को आघात पहुँचता है। उपाय: मुधर वचन बोलना, निश्छल वाणी का सदा प्रयोग करा तथा सामर्थ्य और समयानुसार मौन रखना। शारीरिक-अहिंसा - यदि बौध्दिक और वाचिक-हिंसा का अभ्यास हो जाये, तब शारीरिक-अहिंसा रूक जाती है। शारीरिक-अहिंसा का तात्पर्य है, किसी प्राणी को शरीर से पृथक् कर देना-मार डालना। स्वाद लोलुपतावश जीव हिंसा करना। जब पैर में काँटा चुभ जाने मात्र से इतना बड़ा शरीर काँप उठता है, तब प्राणघात के समय उस प्राणी को कितना कष्ट होता होगा, यह सहज ही अनूमान किया जा सकता है। अहिंसा प्रतिष्ठायां तत् सन्निधौ वैर त्याग:। (योग २-३५) सूत्र कहता है कि अहिंसा की पूर्ण प्रतिष्ठा जीवन का अंग बन जाने पर, उस व्रती के सम्पर्क में आने से हिंस्त्र पशु भी हिंसा त्याग देते हैं; केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा करते हुऐ तुग्ङनाथ के पास ही वन में बने एक कुण्ड से जल लेने जा निकला। वहाँ एक महात्मा भी मुख-हाथ धो रहे थे। दूसरी और पानी पीने के लिए एक बाघ भी खड़ा था। मुझे देख कर बाघ दहाड़ उठा। महात्मा ने मुझे अपने पास बुला लिया और तब हाथ उठाकर बाघ को कहा, 'बच्चा शान्त हो जाओ' वहा शान्त हो गया। मैं उनके पीछे-पीछे चलता कुटिया पर पहुँचा और पूछा कि यह बाघ क्या आपका पालतू है, जो आप के हाथ के इशारे से ही चुप हो गया? वे बोले, "पालतू नही है। प्राय: यह इसी जलाशय के किनारे मिला करता है, मुझे आज तक इसने कुछ नहीं कहा। जब हम इसका अनिष्ट नहीं चाहते तो यह हमारा अनिष्ट क्यों चाहेगा? प्रतीत होता है, आप पूर्ण अहिंसा व्रती नहीं बने है।" |
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